- September 30, 2024
कभी 75-80 प्रतिशत ईसाई आबादी वाला लेबनान कैसे बना मुस्लिम देश, पढ़िए पूरी कहानी
History Of Lebanon : इजरायल और हिजबुल्लाह के बीच चल रहे संघर्ष में सबसे ज्यादा असर लेबनान में रहने वाले आम लोगों पर पड़ रहा है. इजरायल लगातार लेबनान में हिजबुल्लाह के ठीकानों पर एयर स्ट्राइक कर रहा है. इन हमलों में हिजबुल्लाह आतंकियों के अलावा आम लोग भी मारे जा रहे हैं, जिनको इजरायल और हिजबुल्लाह दोनों से ही कुछ लेना-देना नहीं है. इजरायल की बम-बारी में हिजबुल्लाह के टॉप कमांडर हसन नसरल्लाह भी मारा गया है.
अब सवाल ये खड़ा हो रहा है कि क्या हसन नसरल्लाह की मौत के बाद ये संघर्ष खत्म हो जाएगा, या फिर लेबनान पर इजरायल के बमों की बारिश जारी रहेगी.
संघर्ष के पीछे क्या है वजह
इजराइल शुरूआत से ही आरोप लगाता रहा है कि हिजबुल्लाह हमारी सीमा में हमले कर रहा है, जिसकी वजह से हम उसपर पलटवार कर रहे हैं. वहीं लेबनान का संगठन हिजबुल्ला फिलीस्तीन का समर्थन करता है, जिसकी वजह से वो इजरायल को अपना दुश्मन मानता हैं. लेकिन दबी जुबान से सभी यह स्वीकार करते हैं कि दोनों ओर से लड़ाई के कारणों के बारे में दिए जा रहे तर्क केवल दिखावटी हैं. असल वजह कुछ और है. इस संघर्ष के बीच अपने-अपने धर्म को श्रेष्ठता साबित करने की वजह भी सामने आई है. जहां इजरायल यहूदी धर्म का और हिजबुल्लाह इस्लाम के मूल्यों के लिए संघर्ष करने का दावा करते हैं.
धर्म के वर्चस्व को लेकर जारी है संघर्ष
अगर हम लेबनान का इतिहास उठाकर देखते हैं, तो पता चलता है कि सत्ता पर किस धर्म का वर्चस्व हो, इसे लेकर पिछले 100 साल से संघर्ष होता रहा है. लेबनान में साल 1920 में लगभग 75-80 प्रतिशत ईसाई मौजुद थे. लेकिन फ्रांस से आजादी के बाद आबादी संरचना में बदलाव होने लगा. देश में फिलीस्तीन और सीरिया से बड़ी संख्या में शरणार्थी आने लगे. सत्ता में हिस्सेदारी को लेकर ईसाई, सुन्नी मुसलमानों और शियाओं में आपसी संघर्ष होने लगा.
गृहयुद्ध से बदली लेबनान की संरचना
सत्ता में वर्चस्व को लेकर देश में 1975 से लेकर 1990 तक गृहयुद्ध चला, इस गृहयुद्ध ने लेबनान को पूरी तरह बदलकर रख दिया. ईसाई और मुस्लिम वर्चस्व को लेकर हुए इस गृहयुद्ध में एक लाख ईसाई मारे गए और लगभग 10 लाख ईसाई देश से पलायन कर गए. देश में जब ये गृहयुद्ध शुरू हुआ था तब वहां पर 50 प्रतिशत ईसाई और लगभग 37 प्रतिशत मुस्लिम धर्मावलंबी थे, गृहयुद्ध समाप्त होने के बाद वहां 47 प्रतिशत ईसाई और 53 प्रतिशत मुसलमान थे. फिलहाल में
लेबनान में ईसाइयों की वर्तमान तादाद 15 प्रतिशत के आसपास है.
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